महालय यानि पितृपक्ष में लोग अपने पितृगणों का नियमित श्राद्धकर्म करते हैं। धर्म ग्रन्थों में श्राद्ध पक्ष और पितृगणों की विशेष महत्ता बताई गई है। उनकी प्रसन्नता अत्यन्त आवश्यक होती है
महालय यानि पितृपक्ष में लोग अपने पितृगणों का नियमित श्राद्धकर्म करते हैं। धर्म ग्रन्थों में श्राद्ध पक्ष और पितृगणों की विशेष महत्ता बताई गई है। उनकी प्रसन्नता अत्यन्त आवश्यक होती है। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं. राजीव शर्मा कहते हैं कि श्राद्ध पक्ष के सम्बन्ध में कई विशिष्ट बातों का ध्यान रखना चाहिए। इससे श्राद्ध का कार्य सम्पन्न करने से पितृगण अति प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।
1. दो वर्ष से पूर्व यदि किसी बालक की मृत्यु हो जाये, तो इसके लिए श्राद्ध या तर्पणादि करने की आवश्यकता नहीं है।
2. दिन का आठवां मुहुर्त कुतप काल कहलाता है। इसका समय 11:36 बजे से 12:24 बजे तक लगभग होता हैं। यह श्राद्ध में विशेष प्रशस्त होता है। इसमें किया गया श्राद्ध अत्यन्त फलदायक होता है।
3. कम्बल, चांदी, कुशा, काले तिल, गौ और दोहित्र की श्राद्ध में विशेष महत्ता बताई गई है।
4. श्राद्ध में पिण्ड दान करते समय तुलसी का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। इससे पितृ प्रसन्न होते हैं।
5. श्राद्ध में गौ निर्मित वस्तुयें जैसे- दूध, दही, घी आदि काम में लेना श्रेष्ठ होता हो। सभी धान्यों में जौ, तिल, गेंहू, मूंग, सावा, कंगनी आदि को उत्तम बताया गया है।
6. आम, बेल, अनार, बिजौरा, नीबू, पुराना आवंला, खीर, नायिल, खालसा, नारंगी, खजूर, अंगूर, परवल, चिरौंजी, बैर, इन्द्र जौ, बथुआ, मटर, कचनार, सरसो इत्यादि पितृों को विशेष प्रिय होती हैं। अत: भोजन आदि में इनका प्रयोग करना श्रेष्ठ रहता है।
7. श्राद्ध के निमित्त ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। यदि ब्राह्मण नित्य गायत्री का जाप करता हो, सदाचारी हो तो उसे करवाये गये भोजन का विशेष फल प्राप्त होता है।
8. श्राद्ध में भोजन करने वाले ब्राह्मण को यथा सम्भव मौन रखना चाहिए।
9. पितृ पक्ष में तम्बाकू, तेल लगाना, उपवास करना, दवाई लेना, दूसरों का भोजना करना, दातून करना आदि वर्जित माना गया है।
10. श्राद्ध के निमित्त आये ब्राह्मणों को भोजन पकाते व खिलाते समय लोहे के पात्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
11. श्राद्ध पक्ष में मांस एवं मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
12. श्राद्ध पक्ष में गाय का दान श्रेष्ठ माना गया है। यदि पितृों के निमित्त इस अवधि में गो दान किया जाये तो पितृगणों को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
13. श्राद्ध पक्ष के दौरान पितृसूक्त का पाठ करने से पितृगण अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। ब्राह्मण भोजन के समय पितृसूक्त का पाठ करने से इसका तुरन्त फल प्राप्त होता है।
14. सम्पूर्ण श्राद्ध पक्ष में निम्नलिखित पितृ गायत्री नित्य पाठ करना चाहिए।
मंत्र:- ऊँ देवताभ्य: पितृभ्यच्क्ष महायोगिभ्य एव च।
नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।।
15. पितृगणों का मुख सुई की नोक के बराबर बताया गया है। इसी कारण वह अधिकांशत: असंतिृप्त एवं भूखे-प्यासे रहते हैं। श्राद्ध पक्ष के दौरान एवं नान्दी श्राद्ध के समय पितृगणों का मुख ऊखल के समान बड़ा हो जाता है। ऐसे समय में उनके निमित्त जो भी भोज्य सामग्री प्रदान की जाती है वह पूर्णरूपेण उन्हें प्राप्त होती है।
16. यदि किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हुई हो अथवा अपने पितृगणों के मोक्ष के लिए पितृ पक्ष सबसे उत्तम समय होता है।
17. पिता का श्राद्ध ज्येष्ठ पुत्र को ही करना चाहिए। स्मृति ग्रन्थों के अनुसार पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, दौहित्र, पत्नी, भाई, भतीजा, पिता, माता, पुत्र-वधु, बहन, भांजा तथा सपिण्डजनों को श्राद्ध करने का अधिकार है। यथा सम्भव पुरूष को ही श्राद्ध करना चाहिए।
18. शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध के पांच प्रकार बताये गये हैं। 1. नित्य 2. नैमित्तिक 3. काम्य 4. वृद्धि (नान्दी श्राद्ध) 5. पार्वण श्राद्ध। प्रतिदिन पितृ देवताओं के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है उसे नित्य श्राद्ध कहते हैं। इसमें यदि जल से श्राद्ध कराया जाये तो भी पर्याप्त होता है। एकोदिष्ट श्राद्ध को नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं। किसी विशेष कामना की पूर्ति के लिए जब पितृों का श्राद्ध किया जाता है तो वह काम्य श्राद्ध कहलाता है। जब कुल में किसी प्रकार की वृद्धि का अवसर उपस्थित हो जैसे पुत्र जन्म, विवाह जैसे कार्य हों और श्राद्ध किया जाता है तो वह नान्दी श्राद्ध अथवा वृद्धि श्राद्ध कहा जाता है और इसके अतिरिक्त पितृ पक्ष अमावस्या या अन्य पर्व तिथियों पर जो श्राद्ध किया जाता है, उसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं।
19. श्राद्ध से सम्बन्धित पूजा एवं कार्यों में चन्दन, खस और कपूर की गंध को उत्तम बताया गया है। परन्तु श्राद्ध में लाल चन्दन का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए। इसके स्थान पर सफेद चन्दन का प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त गंधहीन पुष्पों, उग्र गंध वाले पुष्पों, काले या नीले रंग के पुष्पों अथवा किसी अशुद्ध स्थान पर उत्पन्न हुये पुष्पों का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए।
20. श्राद्ध में सब्जी या सलाद आदि बनाते समय बैंगन का प्रयोग अत्यन्त निषेध है। इसके अलावा उड़द, मसूर, अरहर, गाजर, लौकी, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, कुल्थी, महुआ, अल्सी एवं चना यह वस्तुयें भी श्राद्ध में वर्जित होती हैं।
21. श्राद्ध से केवल पितृगण ही प्रसन्न नहीं होते बल्कि जो व्यक्ति श्राद्ध करता है वह चराचर रूप में विद्यमान सभी सूक्ष्म देवताओं को भी प्रसन्न करता है। श्रद्धापूर्वक किये गये श्राद्ध से ब्रह्मा इन्द्र, रूद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, वायु, पशुगण, समस्त भूतगण, सर्पगण, वायु देव एवं दिव्य रूप में स्थित ऋषिगण भी प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।